Friday, July 23, 2010

शब्द और भावना-हिन्दी कविता (shabda aur bhavana-hindi poem)

शब्द सुंदर हैं, पर हृदय में नहीं दिखती हैं भावनायें,
आंखें नीली दिख रहीं हैं, पर उनमें नहीं हैं चेतनायें।
प्राकृतिक रिश्ते, कृत्रिम व्यवहार से निभा रहे हैं सभी इंसान,
चमकीले चेहरों का झुंड दिखता है, पर नहीं है उनमें संवेदनायें।
जल में नभ को नाचता देखकर नहीं बहलता उनका दिल
लगता है जैसे लोटे में भरकर उसे अपने ही पेट में बसायें।
कितनी संपदा बटोरी धनियों ने गरीबों का लहू चूसकर
फिर भी हाथ खाली रखते हैं, ताकि उससे अधिक बनायें।
धर्म की रक्षा और जाति की वफा के नारे लगा रहे हैं बुद्धिमान
ज्ञान बिके उनका सदा, इसलिये समाज में भ्रम और भय बढ़ायें।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Tuesday, July 20, 2010

हमदर्दी की रस्म-हिन्दी व्यंग्य कविता (hamdardi ki rasma-hindi vyangya kavita)

दौलत और शौहरत के सिंहासन पर
बैठे लोगों से हमदर्दी की
उम्मीद करना बेकार है
क्योंकि वह डरे सहमे हैं
अपनी औकात से ज्यादा
मिली कामयाबी के खो जाने के खौफ से ,
और दुनियां का यह कायदा
भूलना मुश्किल है कि
डरपोक लोग ही खूंखार हो जाते हैं।
इसलिये हर हादसे पर
उनकी हमदर्दी जताने को
रस्मी समझ खामोश हो जाते हैं।
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Friday, July 16, 2010

हास्य कविताएँ -भ्रष्टाचार पुराण- (bhrashtachar puran-hindi hasya kavitaen)

भ्रष्टाचार के विरुद्ध निकले
जुलूस में एक आदमी ने दूसरे से पूछा
‘‘यार, एक बात बताओ,
सभी जगह भ्रष्टाचार व्याप्त है,
इतने अभियान चलते हैं
पर नहीं होता यह समाप्त है,
बताओ तुम यह भ्रष्टाचार क्या होता है,
तुमने कभी किसी भ्रष्ट आदमी को देखा है
जिसके खिलाफ नारें लगायें।’’

दूसरे ने कहा-‘भई लगता है
बिना किराया लिये हुए यहां आए हो,
बिना मतलब के अपनी जान फंसाए हो,
भला, भ्रष्टाचार कभी समाप्त हो सकता है,
जिसके पास हो थोड़ी भी ताकत
हरे नोटों की माला पहनने के साथ ही
अपनी तिजोरी भरता है,
यह तो रस्मी जुलूस है,
जो हम अपने नेता के कहने पर करने आये हैं,
अपनी रकम पूरी पाये हैं,
किसी आदमी के खिलाफ नारे लगाकर
उसे क्यों मशहूर बनायें,
वह तुरंत अपनी सफाई देने आयेगा,
मुफ्त में प्रचार पायेगा,
फिर इस हमाम में सब नंगे हैं,
जो नहीं पकड़े गये वही चंगे हैं,
यह बड़े लोगों कराते हैं वह हमें करना है,
वह भरते तिजोरी हमें तो पेट भरना है,
पता कब किससे काम पड़ जाये
इसलिये भ्रष्टाचार के खिलाफ  खूब बोलेंगे
उससे जिनको लाभ है वही मुद्दा तोलेंगे
हम बिना वजह किसी का नाम लेकर
उसे क्यों अपना दुश्मन बनायें।’’
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जब उनसे भ्रष्टाचार पर बोलने के लिये
कहा गया तो वह बोले-
‘‘भ्रष्टाचार वह अमृत है जिसे हर कोई चखता है,
स्वयं पीकर अमर होना चाहता है
हर कोई अपनी सात पीढ़ियां
रखना चाहता है हष्टपुष्ट
पर दूसरे पर वक्र दृष्टि रखता है,
जो पीयें उनकी सात पुश्तें तरती
जो न पीयें उनके बच्चे जन्म भर पछतायें।
इससे ज्यादा हम नहीं समझे
तुम्हें क्या समझायें।’’
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Saturday, July 10, 2010

बेवफाओं की भीड़-हिन्दी व्यंग्य कविता (bevfaon ki bheed-hindi vyangya kavita)

दूसरों में वफा की तलाश करते हुए
गुजार देते हैं लोग पूरी जिंदगी
फिर निराश हो जाते हैं।
पर कोई भी इंसान
अपने अंदर बैठे गद्दार को
मार नहीं पाया
सभी ज़माने में वफादार ढूंढते हुए
बेवफाओं की भीड़ में खो जाते हैं।
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एक तरफ दौलत, शौहरत और ताकत के
सिंहासन पर आका खड़े हैं
दूसरी तरफ चमचे उनकी दरबार में जड़े हैं।
बाकी इंसान तो भेड़ों की तरह चल रहे
जिनके सपने अपनी औकात से बड़े हैं।
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Saturday, July 3, 2010

दौलतमंद को सलाम-हिन्दी हास्य कविता (daulatmand ko salam- hasya kavita

भ्रष्टाचार एक भूत है
जो कभी नहीं मिटता,
क्योंकि कभी नहीं दिखता।
जिसकी जेब में जाता पैसा
वह हक की तरह रखता,
जिसकी जेब से जाता
वह भी कहीं अपना दांव तकता,
ज़माने ने बंद कर ली आंख
हर दौलतमंद को सबका सलाम मिलता यहां
भरे बाज़ार में ईमान कौड़ी के भाव बिकता।
जब नहीं लगा मोल
तभी तक हर कोई उसूलों पर टिकता।
चला जो अमीर बनने की राह पर
इंसानियत का हिसाब भी पैसों में लिखता।
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