Thursday, October 30, 2014

जिंदगी में संकल्प का महत्व-हिन्दी कविता(zindagi mein sankalpa ka mahatva-hindi poem)



धरती पर गिरने का भय
आकाश में उड़ने का
संकल्प नहीं देता।

व्यवहार में निरंतरता का अभाव
रिश्ते से जुड़े रहने का
संकल्प नहीं देता।

कहें दीपक बापू संवेदनाओं से
शून्य हो चुके मनुष्य समाज में
जीवन के मार्ग पर
साथ चल रहे पथिक
लक्ष्य पर आते ही
मुंह फेर जाते हैं,
एकांत में खट्टी मीठी
स्मृतियों का ढेर ही
 पास लगा पाते हैं,
अपनी ही बाधाओं का दौर
किसी के मोह से जुड़ने का
संकल्प नहीं देता।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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Friday, October 24, 2014

विदेश में क्रिकेट श्रृंखलां से पाक की संप्रभुता पर सवाल-हिन्दी लेख(test cricket series in dubai between australia and pakistan, a quition on pak natinal integraty)




            पाकिस्तान अपने यहां खेली जाने वाले किक्रेट के परस्पर परीक्षण द्वंद्व श्रृंखला अपनी भूमि की बजाय दुबई तथा शारजाह में खेलता है।  इस समय आस्ट्रेलिया  के साथ उसका परस्पर परीक्षण द्वंद्व चल रहा है।  हमारे देश में इस पर ज्यादा चर्चा नहीं होती पर जिन लोगों को पाकिस्तान के आंतरिक विषयों में रुचि है उनके लिये यह कतई आश्चर्यजनक नहीं है।  पाकिस्तान वास्तव में भारत विरोधियों के मुखौटे से अधिक नहीं है। शायद भारत के रणनीतिकार इसे समझते हैं, इसलिये उसकी गीदड़ भभकियों  से विचलित नहीं होते।
            अनेक भारतीय नागरिक पकड़े तो मध्य एशिया देशों में जाते हैं पर उन्हें स्वदेश न भेजकर पाकिस्तान को सौंपा जाता है, ताकि वहां के शासक अपने भारत विरोध की भूख शांत कर सकें। ऐसा प्रचार माध्यमों से ही पढ़ा था।  इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय विरोधियों की पंक्ति का अग्रभाग है।  वास्तव में पाकिस्तान एक उपनिवेश ही है।  भारत से कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान मे मंत्रिमंडल की बैठक सऊदी अरब में हुई थी।  इससे यह भी साफ हो जाता है कि पाकिस्तान के शिखर पुरुष अपनी प्रजा को अपना नहीं समझते। उनका शासन न्यायपूर्ण नहीं है इसलिये अपने लोगों से ही भय खाते हैं।  अक्सर कहा जाता है कि पाकिस्तान के नेता जब अपने देश में डांवाडोल होते हैं तो भारत विरोधी बयान देते हैं ताकि जनता का क्रोध थमा रहे।  हम ऐसा नहीं मानते। लगता है कि पाकिस्तान के नेता संकट काल में अपनी पंक्ति के पीछे खड़े भारत विरोधी देशों को संदेश देते हैं कि अगर वह टूटे तो पूरी पंक्ति भारत के कोपभाजन का शिकार होगी।  अब तो भारतीय चैनलों पर पाकिस्तानी बुद्धिजीवियों के विचार भी सामने आने लगे हैं।  वह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि हम अपने धर्म का पूर्ण समर्थक न होने के कारण भारत का अस्तित्व सहजता से स्वीकार नहीं कर सकते।  यह अलग बात है कि भारतीय बुद्धिजीवी भी अपने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की बात कहकर चुप हो जाते हैं।  अपने देश के मूल धर्म के श्रेष्ठ होने की बात कहने का साहस किसी में नहीं है। पाकिस्तान को धर्म की वजह से ढेर सारे लाभ हैं इसलिये उसे सहजता से सहायता मिल रही है।
            पाकिस्तानी जनता को जो इतिहास पढ़ाया जाता है उसमें भारतीय धर्मों के प्रति घृणा पैदा करने वाली  जानकारी दी जाती है। बचपन से ही उनमें भारत विरोधी भावना भरी जाती है।  पाकिस्तान मध्य तथा पश्चिमी देशों का उपनिवेश रहा है यह अलग बात है कि आतंकवाद ने उसकी छवि खराब कर दी है।  उसके सहायक देश  भी उससे डरने लगे हैं पर भारत विरोधी की धुरी होने के कारण पाकिस्तान का अस्तित्व बनाये रखना चाहते हैं।  हालांकि पाकिस्तान नाम का देश है जिसकी सीमा पंजाब से बाहर नहीं है।  सिंध, बलूचिस्तान तथा सीमा प्रांत के निवासियों की पहचान पंजाब के प्रभाव के कारण खो गयी लगती है। ऐसे में पाकिस्तान के नेता अपने राष्ट्र की संप्रभुता की बात करते हैं तो हंसी ही आती है।  कम से कम उनके पास क्रिकेट के परस्पर परीक्षण द्वंद्व श्रृंखला दुबई में होने की बात कोई जवाब तो हो ही नहीं सकता।  कोई संप्रभु राष्ट्र कभी ऐसा कर ही नहीं सकता।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Saturday, October 18, 2014

सफेद हाथी-हिन्दी कविता(safed hathi-hindi kavita, white elphant-hindi poem's)

सहज संबंध
बनाती है प्रकृति
लोग तो स्वार्थ से
साथी बन जाते हैं।

निकल जाता है काम
वही लोग फिर सामने
सफेद हाथी की तरह तन जाते हैं।

कहें दीपक बापू वफादारी अनमोल है
मगर बाज़ार में मिल जाती हैं,
निभाने वाले की औकात के हिसाब से
कीमत भी दिलाती है,
झूठ सस्ती शय है
उसके ग्राहक बहुत हैं,
ढोने वाले पाखंडी वाहक भी बहुत हैं,
सत्य का नाम लेकर
भ्रम बेचने के लिये
बाज़ार में सौदागर जम जाते हैं।
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Monday, October 6, 2014

योग साधना में तपने से व्यथित इंद्रियों में सिद्धि आती है-पतंजलि योग साहित्य के आधार पर चिंत्तन लेख(yoga sadhna mein tapane se vyathit indriyon mein siddhi aatee hai-A Hindi hindu religion thought article based on patanjali yoga vigyan)




            विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव से गर्मी का प्रभाव बढ़ रहा है। इससे मनुष्य ही नहीं वरन् पक्षु पक्षियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखा जा सकता है।  सामान्य लोग प्रत्यक्ष दैहिक दुप्प्रभाव देख सकते हैं मगर इस प्रदूषण से पैदा होने वाले  अप्रत्यक्ष मानसिक तथा वैचारिक दोषों को केवल मानसिक और सामाजिक विशेषज्ञ ही समझ पाते हैं। पर्यावरण प्रदूषण, आधुनिक साधनों का दिनचर्या में निरंतर उपयोग तथा असंतुलित सामाजिक व्यवहार से लोगों की मनस्थिति अत्यंत क्षीण होंती जा रही है।
            भारतीय योग साधना का नियमित अभ्यास करने के बाद ही हम इस बात का अनुभव कर सकते हैं कि एक सामान्य और योगाभ्यासी मनुष्य में क्या अंतर है? कुछ वर्ष पूर्व योगाभ्यास प्रारंभ करने वाले एक योग साधक ने इस लेखक को बताया  अनेक बार कुछ व्यक्ति कुछ बरसों के बाद मिले तो उनके व्यवहार में अनेपक्षित परिवर्तन का अनुभव हुआ।  पहले लगा कि यह उम्र या परिवार की वजह से हो सकता है पर धीमे धीमे लगा कि कहीं न कहीं पर्यावरण प्रदूषण तथा अन्य कारण भी कि उनके असंतुलित व्यवहार के लिये जिम्मेदार है।
पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
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कायेन्द्रियसिद्धिशुद्धिखयत्तपसः।
            हिन्दी में भावार्थ-तप के प्रभाव से जब विकार नष्ट होने के बाद प्राप्त शुद्धि से शरीर और इंद्रियों में सिद्धि प्राप्त होती है।
            हम यह नहीं कहते कि सभी लोग मानसिक रूप से मनोरोगी होते जा रहे हैं पर सामाजिक तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात को मान रहे हैं कि समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग दैहिक रोगों का शिकार हो रहा है जिससे विकृत या बीमार मानसिकता का दायर बढ़ता रहा है।  भारतीय योग विधा का प्रभाव इसलिये बढ़ रहा है क्योंकि पूरे विश्व के स्वास्थ्य विशेषज्ञ मान रहे हैं है कि इसके अलावा कोई अन्य उपाय नहीं है। भारतीय योग साधना में आसन, प्राणायाम, धारण और ध्यान की ऐसी प्रक्रियायें हैं जिनमें तपने से साधक में गुणत्मक परिवर्तन आते हैं।  इसके लिये हमारे देश में अनेक निष्काम योग शिक्षक हैं जिनसे प्रशिक्षण प्राप्त किया सकता है। इस संबंध में भारतीय योग संस्थान के अनेक निशुल्क शिविर चलते हैं जिनमें जाकर सीखा जा सकता है।


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Wednesday, October 1, 2014

झाड़ू से बाह्य तथा योग से आंतरिक स्वच्छता का उदय होता है-2 अक्टूबर महात्मा गांधी जयंती पर प्रारंभ भारत स्वच्छता अभियान पर विशेष हिन्दी लेख/नया पाठ (jhadu se bahari tatha yoga se aantrik swachchhata ka uday hota hai-2 october mahatma gandhi jayanti par prarambh swachchhata abhiyay par special hindi new post, article or editorial)




            प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा को महात्मा गांधी रचित श्रीगीता प्रदान की।  हम जैसे योग तथा अध्यात्मिक साधकों के लिये श्री नरेंद्र मोदी की अध्यात्म तथा योग के प्रति जो लगाव है वह अत्यंत रुचिकर विषय है।  इसका कारण यह है कि सामान्य जीवन बिताने वाले साधक की अध्यात्मिक क्षमता पर अन्य लोग सहजता से विश्वास नहीं करते क्योंकि बिना बड़ी भौतिक उपलब्धि के किसी को हमारा समाज ज्ञानी नहीं मानता।  यह मानवीय गुण है  वह शक्तिशाली, उच्च पदस्थ और धनिक के आचरण का सभी  लोग अनुसरण करते हैं।  भगवान श्रीकृष्ण ने मद्भागवत गीता में इस बात का उल्लेख भी किया है कि श्रेष्ठ व्यक्ति का पूरा समाज अनुसरण करता है। उन्होंने स्वयं ही महाभारत युद्ध में श्रीअर्जुन का सारथि बनना इसलिये भी स्वीकार किया ताकि उन्हें शस्त्र भी न उठाना पड़े और कर्म से विमुख होने का आरोप भी न लगे।  श्रीमोदी भी योग तथा अध्यात्मिक दर्शन में रुचि रखने के बाद भी भारत का सर्वोच्च राजसी पद धारण किये हुए हैं इससे उनकी साधना से मिली सिद्धि का परिणाम भी माना जा सकता है। यही कारण है कि आजकल पूरे विश्व में भारतीय अध्यात्मिक दर्शन तथा योग साधना की चर्चा भी खूब हो रही है।
            श्रीमोदी ने सत्ता संभालने के पद निंरतर सक्रियता दिखाई दी है।  उन्होंने 2 अक्टुबर को महात्मा गांधी जयंती पर भारत में स्वच्छता अभियान प्रारंभ करने की घोषणा करने के साथ ही संयुक्त राष्ट्रसंघ में योग दिवस मनाने का प्रस्ताव देकर भारत के अध्यात्मिक प्रेमियों को जहां प्रसन्न किया वहीं शेष विश्व को भी चकित कर दिया है।  जहां बाहरी स्वच्छता से देह की इंद्रियां सुख ग्रहण करती हैं वहीं योग से अंदर भी ऐसी स्वच्छता का भाव पैदा होता है जिससे यही धरती स्वर्ग जैसी लगती है।  भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार उनको ज्ञानी भक्त प्रिय है। ज्ञानी भक्त की पहचान यह दी गयी है कि जो स्थिर, स्वच्छ तथा पवित्र स्थान पर त्रिस्तरीय आसन बिछाकर प्राणायाम तथा ध्यान करे।  इसका सीधा आशय यही है कि पहली स्वच्छता बाहर ही होना चाहिये क्योंकि उसका प्रत्यक्ष संबंध देह से है।  देह हमेशा ही प्रथमतः बाह्य वातावरण से प्रभावित होती है।  अगर वह वातावरण सकारात्मक है तो फिर बुद्धि, मन और विचारों की स्वच्छता के लिये योग साधना सहजता से की जा सकती है। इस तरह आंतरिक तथा बाह्य स्चच्छता जीवन में ऐसा आत्मविश्वास पैदा करती है कि मनुष्य जिन संासरिक विषयों में बड़ी उपलब्धि पाने के लिये लालायित रहता है वह उसे सहजता से प्राप्त कर लेता है। योग साधना के अभाव में  दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक रुगणता होने से जहां  मनुष्य एक साधक की अपेक्षा अधिक सांसरिक विषयों में उपलब्धि करने के लिय उत्सुक रहता है वहीं शक्ति के अभाव में हारता भी जल्द है।
            2 अक्टुबर 2014 महात्मा गांधी की जयंती का दिन पिछले अन्य वर्षों की अपेक्षा अधिक चर्चा का विषय इसलिये ही बना है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी न केवल राजनीतिक विषय बल्कि आर्थिक, सामाजिक तथा अध्यात्मिक विषयों में भी नये प्रकार का स्फूर्तिदायक संदेश दे रहे हैं।  हमारी तो यही कामना है कि वह सफल हों।  हम जैसे सामान्य, स्वतंत्र तथा मौलिक विचार लेखकों की अपनी कोई महत्वांकाक्षा नही होती पर यह कामना तो होती है कि अपने आसपास के लोग भी प्रसन्न रहे।  योग साधना, गीता अध्ययन तथा सात्विक कर्म से ही यह जीवन सहजता से जिया जा सकता है। हमारे ब्लॉग पाठकों की संख्या अधिक नहीं है और न ही ऐसे संपर्क सूत्र है कि किसी प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचा सके।  इसलिये अपने पाठकों से ही अपनी बात कहकर दिल खुश करते हैं।  योग तथा श्रीगीता पर किस भी व्यक्ति की सक्रियता हमें प्रसन्न करती है इसलिये ही यह लेख भी लिखा है। हम आशा करते हैं कि प्रधानमंत्री अपने नियमित कर्म में सफल रहकर देश एक नया अध्यात्मिक मार्ग का निर्माण करेंगंे।
        

लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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