Wednesday, November 25, 2015

अभिनेता अब अपना धर्म भी बताने लगे हैं-असहिष्णुता विवाद पर सहिष्णु व्यंग्य चिंत्तन लेख (A Actor Stetment on Intolerance-A Hindi Satire Thought article)

                       सुबह जब एक अभिनेता  देश में कथित असहिष्णु वातावरण होने  का बयान टीवी पर सुना तब घर से जाते समय हमने उसके लिये दुआ की थी-हे सर्वशक्तिमान! टीवी चैनल, ट्विटर और फेसबुक पर उस कम से कम शाब्दिक हमलें हों?
                       मालुम था कि हमारी दुआ काम नहीं आयेगी। जब आप आत्ममुग्ध होकर इस सोच के साथ बोलते हैं कि आप इतने प्रभावी हैं कि आपकी जाति, भाषा तथा धर्म के कारण कोई चुनौती नहीं दे सकता तब इस बात पर भी विचार करना चाहिये कि आपकी सार्वजनिक छवि कैसी है? बरसों तक अपने अभिनय से लोगों के हृदय को बहलाने के बाद अचानक जब स्वयं के धर्म का नाम छाती फुलाकर बताते हैं तो यकीन मानिये की आप अपनी ही छवि ध्वस्त करने वाले हैं। उस अभिनेता  के बयान का समर्थन या विरोध करने से अलग महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने अपने लाखों प्रशंसक एक साथ खो दिये।
                       हमने आज अनेक ऐसे लोगों को उस अभिनेता पर नाराज होते देखा जो उनके प्रशंसक है। लगता है एक दिन में उन्होंने लाखों प्रशंसक खो दिये। व्यवसायिक दृष्टि से यह ऐसी साख खोना है जिसे दोबारा वापस पाना अत्यंत कठिन होता है।
                       अपने चंद शब्दों से स्वयं की जीवन भर के प्रयासों से बनी स्वयं की छवि धूमिल की जा सकती है- एक अध्यात्मिक साधक की बात कौन समझ पायेगा। अपने शब्दों की अभिव्यक्ति से अपनी बरसों पुरानी छवि का सत्यानाश कुछ लोग कर ही देते हैं-साधक के अनुसार आत्ममुग्धता डर पैदा करती है। अध्यात्मिक चिंत्तक मानते हैं कि मनुष्य सबसे ज्यादा भयभीत तब होता है जब उसे अपना भांडा चौराहे पर फूटने की शंका लगती है।
                       जब हम धर्म से आतंकवाद न जोड़ने की बात कहें तो राज्यप्रबंध भी उससे अलग रखने के लिये सभी देशो से कहना चाहिये। जिन देशों का राज्यप्रबंध धर्म पर आधारित हैं वहां मानवीय सिद्धांत तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं होता। भारत धर्म आधारित राज्य प्रबंध देशों से साफ कहे कि वह अपने यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी का वातावरण बनायें ताकि वहां जनमानस आतंकवाद की तरफ आकर्षित न हो।

लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com


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Monday, November 16, 2015

गम कभी छांटे नहीं जाते-हिन्दी शायरी (Gum kabhi chhante nahin jaate-Hindi shayri)

जिंदगी के हसीन पल
ताश के पत्तों की तरह
कभी बांटे नहीं जाते।

गुलाब के फूल
चढ़ते मंदिर में
साथ कभी कांटे नहीं जाते।

कहें दीपकबापू खुश रहने के लिये
हृदय को साधना जरूरी
चाहे साथ हो कितनी मजबूरी
गम कभी छांटे नहीं जाते।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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Friday, November 6, 2015

सच बाज़ार में चलता नहीं-हिन्दी कविता(Sach Bazar mein chalta nahin-Hindi Poem)

निंदा व स्तुति का भी
अब होता व्यापार
सम्मान का दाम होता है।

भलाई के नाटक में
सफल अभिनय से
बड़ा नाम होता है।

मिलती प्रसिद्धि उसे भी
जो दर्द पैदा कर
बदनाम होता है।

कहें दीपकबापू सच के पांव होते
मगर बाज़ार में चलता नहीं
बिकना पाखंड का काम होता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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